कमल खिल गए…
अप्पू को छोड़कर पप्पू से मिल गए,
अच्छे दिन तो इसी जेब में पड़े थे…
काला धन कब आएगा सब विरोधी अड़े थे,
ये वही लोग थे जो तिजोरियों में बंडल भरे थे|
कुर्ते की फटी जेब दिखा कर पप्पू जी ये बोले,
हमारे अच्छे दिन तो इसी जेब में पड़े थे।|
“दिमाग की रीसाइक्लिंग”
“दिमाग की रीसाइक्लिंग”
वो खुद सामने आये…
मैं कहाँ किसी को ढूँढने निकला,
जिसे तलाश मेरी…वो खुद सामने आये|
“घड़ी”
“जूते”
उक्त पुस्तक सम्बन्धी अन्य जानकारी के लिए पढ़ें: https://manaskhatri.wordpress.com/2012/10/07/order-details/
आप के विचार-